सैकड़ो की तादाद में आवेदन प्रतीक्षारत है, जिन पर दिव्यांग प्रमाण पत्र कार्यालय के बाबूओं ने साध रखी है चुप्पी
बरेली। दिव्यांग बच्चों के लिए जिला अस्पताल द्वारा तमाम ब्लॉक में समय-समय पर एसेसमेंट कैंप लगाए जाते हैं। इन कैंपों के माध्यम से परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले दिव्यांग बच्चों को जिला अस्पताल की मेडिकल टीम द्वारा परीक्षण करने के बाद दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं इन प्रमाण पत्रों के माध्यम से दिव्यांग बच्चों को उनकी आवश्यकता के अनुसार उपकरण भी प्रदान किए जाते हैं।
यहां तक तो सब कुछ ठीक नजर आता है लेकिन जिला अस्पताल के दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी करने वाले कार्यालय द्वारा इन्हीं बच्चों के यूडीआईडी आवेदनों पर कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आती, जिन आवेदनों पर जिला अस्पताल कैसे कार्यालय द्वारा कार्यवाही की जाती है वह तब ही संभव हो पाती है जब कार्यालय में बैठे हुए कर्मचारी और बाबुओं की जेब में होती है। हर किसी व्यक्ति के पास इन बाबू को देने के लिए धनराशि नहीं आती इस कारण उन्हें।
इस कार्यालय के एक नहीं कई-कई चक्कर लगाने होते हैं बावजूद इसके उनका काम नहीं हो पता। सूत्रों के मुताबिक अभी भी जिला अस्पताल के दिव्यांग प्रमाण पत्र कार्यालय पर सैकड़ो की तादाद में आवेदन प्रतीक्षारत है जिन पर इस कार्यालय के बाबूओं ने अभी तक कोई स्वीकृति नहीं दी है। इस प्रकारण को लेकर ब्लॉक स्तर पर कार्यरत दिव्यांग बच्चों को पढ़ने वाले स्पेशल एजुकेटर कई बार जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी से मुलाकात कर चुके हैं लेकिन अभी तक इस मामले पर कोई बड़ी राहत दिव्यांग व्यक्तियों या दिव्यांग बच्चों के अभिभावकों को नहीं मिल सकी है।
क्या होता है यू डी आई डी कार्ड ?
अभी कुछ साल पहले तक दिव्यांग व्यक्ति अपने दिव्यांग प्रमाण पत्र की छाया प्रति रोडवेज बस के कंडक्टर को देकर बस में फ्री यात्रा कर सकते थे, लेकिन अब नियम बदल दिए गए हैं अब यूडीआईडी कार्ड के जरीये ही दिव्यांग व्यक्ति रोडवेज में सफर कर सकता है। इसीलिए दिव्यांग प्रमाण पत्र बन जाने के बाद ऑनलाइन यूडीआईडी की वेबसाइट पर जाकर दिव्यांग व्यक्ति को या उसके अभिभावक को आवेदन करना होता है जिसके बाद जिला अस्पताल के दिव्यांग प्रमाण पत्र कार्यालय द्वारा उस पर स्वीकृति मिलती है और यूडीआईडी कार्ड बनकर तैयार होता है।
हर ब्लॉक में पीएम श्री योजना के तहत कैंप लगाये गए थे। जिनमे दिव्यांग बच्चों को जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया, उसके लिए लगतार स्पेशल एजुकेटर विकलांग बोर्ड के चक्कर काट रहे हैं फिर भी उनके दिव्यांग प्रमाण पत्र नहीं बन रहे हैं और कैम्पो में डॉक्टर सिर्फ एक साल या 2 साल के लिए ही प्रमाण पत्र बना रहे हैं जिसे काफी परेशानी हो रही है सीएमओ ऑफिस में पहले मानसिक बच्चों के लिए एक मनोविज्ञानिक डॉक्टर थी लेकिन वह इस्तीफा देकर चली गई है।
अब मानसिक दिव्यांग बच्चों को मानसिक चिकित्सालय ले जाना पड़ता है वहां पर भी काफी लंबी लाइन लगती है वहंा पर उनका आईक्यू टेस्ट होता है, उसके बाद उन्हे दोबारा जिला अस्पताल लाना पड़ता है तब जाकर उनका प्रमाण पत्र बनता है लेकिन वहां बैठे हुए कंप्यूटर ऑपरेटर यदि किसी बच्चे की दिव्यांगता गलत भर देते हैं जैसे कि दिव्यांग बच्चों के लिए मानसिक बीमारी भर देते हैं तो उनका प्रमाण पत्र मानसिक बीमारी का बन जाता है इसे काफी परेशानी होती है।