Thursday, December 5, 2024
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हिंदी भाषा है हमारी संस्कृति और संस्कार

बरेली। 14 सितंबर को पूरे देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी पखवाड़ा, हिंदी दिवस से लेकर सितंबर माह के अंत तक होता है। हर वर्ष की भांति इस बार भी “साहित्य वेलफेयर कल्चरल एंड स्पोर्ट्स फेडरेशन” तथा “राष्ट्रीय कवि पंचायत मंच” के संयुक्त बैनर तले 22 सितंबर रविवार 2024 को आज के अंग्रेजी युग में “हिंदी भाषा की दिशा और दशा”, आज की युवा पीढ़ी हेतु हिंदी का महत्व, तथा आज कल के तथाकथित कवि “हिंदी के साधक अथवा हिंदी में बाधक” विषय पर हिंदी मर्मज्ञ व साहित्य मनीषी वक्ताओं द्वारा समीक्षा, चर्चा परिचर्चा, हिंदी कार्यशाला पर व्याख्यान का होना सुनिश्चित किया गया है।

दूसरे चरण में एक भव्य कवि सम्मेलन के आयोजन में , इसलिए हिंदी के प्रति आज की पीढ़ी को जागरूक करना बहुत ही आवश्यक बन जाता है। फेडरेशन के चेयरमैन पंडित साहित्य चंचल ने यहां तक कहा कि आजकल के तथा कथित कवियों ने हिंदी साहित्य और कविता की परिभाषा ही बदल कर रख दी है जो कि बड़ी ही विडंबना और चिंता का विषय है। कवि सम्मेलन तथा कवि गोष्ठियों के आयोजन से कुछ हद तक हिंदी के प्रचार और प्रसार को प्रदर्शित तो किया जा सकता है।

लेकिन मात्र कवि सम्मेलनों के आयोजनों के सहारे हिंदी के भविष्य को सुरक्षित नहीं किया जा सकता है। हिंदी साहित्य को सही मायने में आगामी पीढ़ी तक पहुंचाना गंभीर विषय के साथ एक कठिन चुनौती भी है। श्री चंचल का कहना है कि आज “हिंदी बचाओ अभियान” चलाने की नितांत आवश्यकता है, जिसके अंतर्गत “हिंदी पढ़ाओ संस्कृति बचाओ” पर ज़ोर दिया जाना तथा सच्ची भावनाओं के साथ इस लक्ष्य को जन मानस तक पहुंचाना आज हर एक सच्चे साहित्यकार का फर्ज़ और धर्म है।

आगामी पीढ़ी को हिंदी के प्रति जागरूक करने के लिए “साहित्य वेलफेयर कल्चरल एंड स्पोर्ट्स फेडरेशन” तथा “राष्ट्रीय कवि पंचायत मंच” के संयुक्त बैनर तले उनकी कार्यकारिणी की बैठक में हिंदी भाषा में अच्छे प्राप्तांक लाने वाले कुछ विद्यार्थियों को हिंदी पखवाड़ा पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में यथावत सम्मानित किये जाने का निर्णय लिया गया है। फेडरेशन के नेशनल चेयरमैन पंडित भव्य भचंचल ने इस आयोजन के प्रयोजन से संबंधित आज के रचनाकारों से अपील की है कि कवि सम्मेलन अथवा गोष्ठियों में काव्य पाठ से ज्यादा बेहतर होगा।

कि इस अंग्रेजी युग में आज की युवा पीढ़ी को हिंदी के प्रति जागरूक कर हिंदी राजभाषा तथा राष्ट्र के निर्माण में योगदान देकर अपने मार्गदर्शक व पथ प्रदर्शक होने का प्रमाण देकर बख़ूबी अपना कवि धर्म निभाएं तथा साथ ही इस अंग्रेजी युग में हिंदी भाषा को लुप्त होने से बचाने का पुनीत कार्य कर अपने कर्तव्य के प्रति वफादारी निभाएं। उन्होंने रचनाकारों से प्रपंच छोड़कर एक सुदृढ़ मंच की अपील की है। श्री चंचल ने विगत 25 वर्षों की भांति इस मिशन को आगे बढ़ाने का निर्णय लेकर भविष्य में भी राजभाषा और राष्ट्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है।

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